चार मूर्ख – Hindi Kahaniya
चार मूर्ख – Hindi Kahaniya :-
एक दिन मनोरंजन के समय राजा कृष्ण चन्द्र के मन में एक बात आयी कि संसार में मूखों की संख्या का तो ठीकाना नहीं है, परन्तु मैं चार मूर्ख देखना चाहता ह । राजा ने गोपाल भांड से कहा-“इस ढंग के चार मूर्ख तलाश करो कि जिनकी जोड़ के दूसरे न मिलें ।”
गोपाल भांड ने कहा-“जो आज्ञा राजन! पढ़ने वालों को क्या नहीं मिल सकता है-केवल सच्ची लगन होनी चाहिए।”
कुछ दूर जाने के बाद गोपाल भांड को एक आदमी दिखायी पड़ा जो थाली मे पान का एक जोड़ा-बीड़ा और मिठाइयाँ लिये बड़े उत्साह से नगर की तरफ जल्दी जल्दी भागाजा रहा था। गोपाल भांड ने उस आदमी से पूछा- क्यों साहब ! यह सब सामान कहां लिये जा रहे हो? आपके पैर खशी के मारे जमीन पर नहीं पड़ रहे हैं? आपके इस कारण को जाननेकी मुझे बड़ी इच्छा है, इसलिए थोड़ा कष्ट करके बतलाते जाइए।
उस आदमी ने बातें टालने की कोशिश की क्योंकि वह अपने नियत स्थान पर जल्दी पहुंचाना चाहता था । परन्तु गोपाल भांड ने बार-बार उसे बताने का आग्रह किया तब यह व्यक्ति बोला-“यद्यपि मुझे विलम्ब हो रहा है फिर भी आपके इतना आग्रह करने के कारण बता देना भी बहुत जरूरी है । मेरी औरत ने एक दूसरा पति रख लिया है । दोनों की आज शादी है-इसलिये उसके निमंत्रण पर जा रहा है ।” गोपाल भाड़ ने सोचा-इसके जैसा मूर्ख और कहाँ मिलेगा । अत: उन्होने अपना परिचय देकर उसे रोक लिया और कहा-“तुम्हें राजा के दरबार में चलना होगा तब ही तुम निमंत्रण में जा सकोगे।” वह राज दरबार का नाम सुनकर तो डर गयाक लेकिन लाचार होकर गोपाल भांड के साथ हो लिया । वह इसको लेकर आगे बढ़ा । देवयोग से रास्ते में एक घोड़ी सवार मिला । वह स्वयं तो घोड़ी पर सवार था परन्तु उसके सिर पर एक बड़ा गट्ठर रखा हुआ था । गोपाल भांड ने उस आदमी से पूछा-“क्यों भाई! यह मामला क्या है? अपने सिर का भार अपनी घोड़ी पर लादकर क्यों नहीं ले जा रहे हैं?” उस आदमी ने उत्तर दिया-“भैया! मेरी घोड़ी गर्भवती है । इस अवस्था में अधिक बोझ उसके ऊपर लादना ठीक नहीं है । इसलिए बोझा का गट्ठर मैंने अपने माथे पर रख लिया है । यह मुझे ढो रही है, इतना ही क्या कम है?”
गोपाल भाड ने इस व्यक्ति को भी अपने साथ ले लिया । अब गोपाल भांड दोनों व्यक्ति को अपने साथ लेकर राजा के पास पहुंचा और राजा को निवेदित किया-“ये चारों मूर्ख आपके सामने हैं।”
राजा ने कहा-“ये तो केवल दो ही हैं । अन्य और दो मूर्ख कहां है?”
गोपाल भांड ने तपाक से बोला-“तीसरा मूर्ख स्वयं हजूर हैं जिसे ऐसे मूखों को देखने की इच्छा होती है और चौथा मूर्ख मैं हूँ जो इन्हें ढूंढ़ कर आपके पास लाया हूँ।”
राजा कृष्ण चन्द्र को गोपाल भांड के विनोद युक्त ऐसे कार्य औरशब्दों ने प्रसन्नता प्रदान की और दोनों मुर्ख के बारे में पूरी कहानी सुनी तो पेट पकड़कर हंसने लगे। हंसते-हंसते पेट में दर्द हो गया।
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